
कुत्ते पालने का शौक लोगों में छुआछूत की बीमारी की तरह से फैल रहा है। कुत्ते पालने की लोगों की इस बढती मांग को देखते हुए जगह-जगह कुत्ते बेचने के डीलर्स या पार्लर खुल गए हैं। छोटी नस्ल के कुत्तों की आयु 12 से 15 वर्ष तक पाई जाती है, जबकि बडों की 15 से 20 वर्ष तक। पामेरियन एक से दो माह की आयु में लायक हो जाते है। पामेरियनों में अधिकतर सफेद, काले, चित्तकबरे, ब्राउन पाए जाते हैं।
लोगों का ज्यादा पसंदीदा सफेद रंग होता है, जिसे सुंदरता, प्यार का प्रतीक माना जाता है। पाॅमेरियंस की खुराक बहुत ही कम होती है। उन्हें पालने में कोई अतिरिक्त खर्च नहीं होता। तेल, मीठी चीजों से परहेज कर इन्हें वे सभी चीजें खिलाई जा सकती हैं जो सामान्यतः घरों में बनाई जाती हैं। इन्हें बाहर घुमाने फिराने की भी जरूरत नहीं होती, घर में ही इन्हें घुमाया जा सकता है। घर की चैकीदारी करने में भी पाॅमेरियन चुस्त माने जाते हैं।
घर में किसी अजनबी के प्रवेश करते ही ये जोर-जोर से भोंकने लगते हैं और तब तक भौंकते रहते हैं, जब तक व्यक्ति आंखों से ओझल नहीं हो जाता या मालिक उन्हें भोंकने से नहीं रोकता। घर में परिवार के किसी सदस्य के देर रात आने पर सब भले ही सोए रहें पर पाॅमेरियन उस सदस्य की जरा सी आहट आते ही उसके पांवों में लिपटकर खुशी का इजहार करेगा। कुत्तों की प्रमुख नस्लों में लेब्राडोर, डाॅबरमेन, बाॅक्सर, डेसून्ट, ब्लेडहाउन्ड पाई जाती है। मस्ट़ीक ग्रेट डेन, बूरोजी कुवसेज, सेंट बर्नाड बडी नस्ल वाले कीमती कुत्ते माने जाते हैं। व्ल्हासाप्सा, कांकर, स्पेनीयल, एलसेसिएन, लबकेजर, डाॅबरमेन, ऐसे कुत्ते हैं जो कम खर्चीले होते हैं। डाबर मेन कुत्ते की पूंछ इतनी लंबी होती है कि उसे काटना पडता है। पूंछ काटने से उसकी सूंघने की शक्ति बढ जाती है। वैसे भी कुत्तों की देखने, सूंघने की क्षमता ज्यादा होती है, इसलिए पुलिस द्वारा जासूसी कुत्तों का उपयोग अपराधियों को पकडने हेतु किया जाता है। रैबीज बीमारी से कुत्ते पागल हो जाते हैं। इस बीमारी से वायरस द्वारा उत्पन्न विषाणु कुत्ते के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इससे कुत्ता सुस्त व चिढचिढा हो
जाता है। वह बात-बात में गुर्राने-भोंकने लग जाता है। उसके मुंह से झाग आने लग जाता है तथा आंखे लाल हो जाती हैं। इस बीमारी से ग्रस्त कुत्ते का काटा व्यक्ति इलाज के अभाव में मर जाता है। कुत्तों को इस बीमारी से मुक्ति हेतु वैक्सीन इंजेक्शन लगवाने पडते हैं।
कुत्तों में डिस्टेम्पर बीमारी भी खतरनाक होती है। यह बीमारी कुत्तों में छह मास से कम उम्र में प्रहार करती है। इसके प्रमुख लक्षण हैं, कुत्ते के पेट पर पीले छाले पडना, दस्त लगना। इससे कुत्ते का टेम्प्रेचर कम हो जाता है। जिस तरह लकवे से मनुष्य अपना शरीर का अंग गंवा देता है ठीक उसी तरह इस बीमारी से कुत्ते का कोई भी अंग बेकार हो जाता है। इस बीमारी की रोकथाम हेतु कुत्ते को हापाटायटिस, लेप्टो स्पेरोसिस बूस्टर इंजेक्शन लगवाने पडते हैं। कुत्तों की जुबान की लार दवा का काम करती है।
भारतीय जीवन बीमा निगम कुत्तों का बीमा भी करता है। अन्य जानवरों की भांति सर्कस, पुलिस प्रशिक्षण वाले कुत्तों का बीमा भी करवा लेते हैं। बीमे में कुत्ते की निशानी, जाति, Ĺंचाई आदि जानकारी मांगी जाती है। बीमा अधिकतम एक लाख रूपए तक होता है। कुत्तों को बढिया भोजन के साथ ओस्टो कैल्शियम, सायरप, व्हीम राल टाॅनिक भी दिए जाते हैं। जयपुर के राजा मानसिंह का कुत्ता उसी स्थान पर आठ दिन बाद मरा था, जहां उसके स्वामी की गोली लगने से मृत्यु हुई थी। कुछ वर्षों पूर्व इंदौर के बैराठी काॅलोनी में एक गाय बछिया को जन्म देकर एकाएक मर गई थी, तब वहां एक कुतिया ने उस बछिया को दूध पिलाया था।
