एक स्वामीभक्त कुत्ते का लंबा सफर

नाम उस कुत्ते का बाॅबी था। बाॅबी कोली जाति का एक खूबसूरत कुत्ता था, जिसका मालिक फ्रेंक ब्रेजियर अमेरिका के ओरगन राज्य के सिलवर्टन कस्बे का निवासी था।6 जून 1923 को फ्रेंक ब्रेजियर अपने पूरे परिवार के साथ कुछ महीनों के लिए इंडियाना राज्य के बासकट शहर में आ गया। वह अपने प्यारे कुत्ते बाॅबी को साथ लाया था किंतु कुछ दिनों बाद बासकट में बाॅबी कहीं खो गया। ब्रेजियर ने उसे काॅफी खोजा, किंतु बाॅबी नहीं मिला। अंत में निराश होकर परिवार वापस सिलवर्टन लौट आया।
इधर, बाॅबी जो बासकट शहर की अजनबी सडकों पर में रास्ता भूल गया था, ने अपने मालिक को काफी ढूंढा। लेकिन जब उसे अपने मालिक का कोई पता बासकट में नहीं चला तो उसने वापस पुराने कस्बे सिलवर्टन जाने का इरादा किया।  बाॅबी को इंडियाना से सिलवर्टन जाने के रास्ते बिल्कुल मालूम नहीं थे। फिर वह एक इन्टयूशन के सहारे जगह-जगह भटकता और राह में अनेक परेशानियों का सामना करता हुआ जैसे-तैसे ओरगन राज्य की सीमा तक आ पहुंचा। यहां आने पर भी बाॅबी के लिए यह जानना इतना आसान नहीं था कि वह कहां तक पहुंचा है और उसकी मंजिल किधर है? वह न तो साइन बोर्ड पढ सकता था, न किसी को अपनी परेशानी बता सकत था। न कुछ पूछ सकता था और न ही हर मोड पर लगे मार्ग संकेतों को समझ सकता था। बाॅबी ने अपने सामने देखा, एक बहुत बडा पठार उसे नजर आया, जिसके क्षितिज पर में नीले-नीले से दिखने वाले पहाड थे। सर्दियों का मौसम था इसलिए चारों ओर धुंध छाई हुई दिखाई दे रही थी। पठार का कहीं अंत होता नजर नहीं आता था, इतने दिनों के मुश्किल भरे सफर के बाद बाॅबी बहुत थक चुका था।

 उसके खूबसूरत जिस्म पर मांस का नाम नहीं, केवल हड्डियां ही शेष रह गईं थीं। बाल भी झड चुके थे। बाॅबी ने सोचा कि यदि वह पश्चिम की ओर बढा तो मंजिल तक पहुंचने के पहले ही दम टूट जाएगा, क्योंकि वह वीरान पहाडी रास्ता था। बाॅबी अंत में उत्तर की ओर मुड गया और तीन दिन के थका देने वाले रास्ते को तय करने के बाद अब वह कोलम्बिया नदी के तट पर था। नदी के पास ही एक चैडी सडक बनी हुई थी। वह सडक पर चलने लगा। वह सीधे पोर्टलैंड के रास्ते चल रहा था। बहुत आगे चलने के बाद उसने अपना मार्ग बदल लिया। यदि वह मार्ग नहीं बदलता तो निश्चित ही आगे उस भारी यातायात भरी सडक पर किसी गाडी के नीचे दबकर प्राण त्याग देता। आगे चलने पर वह एक ऐसे स्थान पर पहुंचा, जहां चारों ओर हरे-भरे खेत थे।

कुछ आगे चलने पर बाॅबी पोर्टलैंड की मुख्य सडक से आ लगा था। पोर्टलैंड से सिलवर्टन की दूरी लगभग 70 मील थी। लेकिन बाॅबी इतना कमजोर हो चुका था कि अब उससे अधिक चलना मश्किल हो रहा था। किसी तरह शहर के पिछवाडे की स्डकों से होकर गाडियों से बचते हुए वह एक मकान के पिछवाडे पहंचा। थकान से उसका शरीर टूट चुका था और कई रातों के जागरण से उसकी आंखे लाल हो रही थी। भूख-प्यास से उसका बुरा हाल था। मकान मालकिन ने उस कुत्ते की वह दयनीय दशा देखकर एक प्लेट में शारबा भरा मांस और एक बर्तन में पानी भरकर उसके सामने रख दिया। बाॅबी ने पहले तो जी भरकर पानी पिया, फिर मांस खाया। मकान मालकिन एक आयरिश विधवा थी। विधवा ने उसके बाद उसे शोरबे में भीगी रोटी दी। अब बाॅबी का पेट भर चुका था। इसलिए वह वहीं बैठकर ऊंघने लगा। आयरिश महिला ने उसे बडे प्यार से अपने कमरे में सुला दिया। दूसरे दिन जब दरवाजा खुला तो बाॅबी वहां से निकलकर फिर अपनी मंजिल के लिए चल पडा।
इस बार वह बगैर विशेष परेशानी के अपने अंतिम लक्ष्य तक पहुंच गया। सिलवर्टन में बाॅबी को सारा माहौल अजनबी-सा लगा। वह अपने पूर्व परिचित फार्म में बने मकान पर पहुंचा। सभी लोग अपने-अपने कामों में व्स्त थे। किसी का उसकी ओर ध्यान नहीं गया। यदि परिवार के सदस्यों ने उसे देखा भी देखा तो कोई आवारा और मरणोन्मुख कुत्ता मानकर अपने कमों में लगे रहे। लेकिन जब बाॅबी ने परिवार के बच्चों के साथ खेलना शुरू कर दिया तो सबका ध्यान उसकी ओर गया। गौर से देखने पर सभी को यह अपना बाॅबी लगा। कुछ देर बच्चों के साथ बिताने के बाद वह रसोईघर में गया तो मालकिन मिसेस ब्रेजियर उसे देखकर चैंक पडीं। जब उन्हें बताया गया कि यह बाॅबी ही है तो उन्हें एकाएक विश्वास नहीं हुआ। लेकिन कुछ ही समय में बाॅबी के हाव-भाव और बोली से वह समझ गई कि यह उनका अपना बाॅबी ही है। भावावेश में मिसेस ब्रेजियर की आंखों में आंसू बह निकले। वह बाॅबी से लिपटकर फूट-फूटकर रो पडी।

 इसके बाद बाॅबी ऊपर गया। उसे पता था कि वहां पर निश्चित रूप से उसका मालिक फ्रेंक ब्रेजियर उसे मिलेगा। ब्रेजियर अपने कमरे में पलंग पर लेटा ऊंघ रहा था। बाॅबी एक ही छलांग में पलंग कूद गया और अपने मालिक से लिपट गया। ब्रेजियर एकाएक चैंककर एकदम उठ बैठा। अपने सामने बाॅबी को देखकर वह दंग रह गया। वह सपने में भी नहीं सोच सकता था कि उसका प्यारा बाॅबी इस तरह वापस मिल जाएगा। बाॅबी भी बुरी तरह भौंक-भौंक कर अपनी खुशी का इजहार कर रहा था। ऐसा लग रहा था मानो बाॅबी खुशी से पागल हो उठा हो। घर के सभी लोग अपने प्रिय कुत्ते की इस अविश्वसनीय वापसी से भाव विह्वल हो उठे थे। चारों ओर से ‘बाॅबी बाॅबी’ की आवाजें कुत्ते को हैरानी और हर्ष में डल रही थी। उस दिन बाॅबी रात भर और दिन भर अपने मालिक फ्रेंक ब्रेजियर को छोडकर नहीं गया, आसपास और मोहल्ले के लागों को बाॅबी की इस वापसी का पता चला तो ब्रेजियर के घर बधाई देने वालों का तांता लग गया।

इस तरह एक कुत्ते के द्वारा तीन हजार मील अनजाने रास्तों को तय करना निश्चित ही अपने आप में एक अनूठा रिकार्ड है। स्वामी भक्त बाॅबी ने आखिरकार अपने मालिक को बाधाओं के बावजूद पा ही लिया था।  (रविवार, 9 अप्रैल 1989 को प्रकाशित समाचार )
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