
सन् 1978 में एक प्रसिद्ध कवि की पुण्यतिथि मनाई गई और उनकी पुस्तक ‘राजसंन्यास’ एक श्वान को समर्पित की गई। शायद ऐसा दुनिया में पहली बार हुआ कि एक साहित्यिक रचना एक कुत्ते को समर्पित की गई हो। कौन जानता है कि आने वाले वाले दिनों में कुछ लेखक और कवि जे कुत्तों को यार करते हैं वे अपनी रचनाएं मनुष्य को छोडकर कुत्तों को समर्पित करें।
15 दिसंबर 1978 को दिल्ली में हमें एक मित्र के घर बडा अप्रिय अनुभव हुआ। जैसे हम उनके घर पहुंचे सीधे उनके कमरे में ही गए। वे घूमने चले गए थे। हम बार-बार दरवाजे पर आकर उनके आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। गलियारे में उनका पालतू कुत्ता विराजमान था और हमारी तरफ बुरी निगाह से देख रहा था। हम भी दरवाजे के पास सचेत खडे रहे। जैसे ही वह गुर्रा कर झपटा, हमने दरवाजा बंद कर दिया। कुछ समय बाद हमारे मित्र आ गए और कमरा बंद देखकर उन्हें बडा आश्चर्य हुआ। उनके आने पर हमने दरवाजा खोला और बताया कि मैं कुत्ते से कैसे बचा। उन्हें इस बात पर दुख हुआ परंतु वे कुछ बोले नहीं, क्योंकि घर में दूसरे लोग इस जानवर को बहुत प्यार करते थे। उन्होंने अपने लडके को बुलाकर कहा कि वे मुझे कुत्ते के पास ले जाएं और उसे मुझे सूंघा दें, जिससे कभी दोबारा ऐसा न हो। मुझे उस कुत्ते से दोस्ती करने की बात पसंद नहीं आई। मैं सोचता था कि कुत्ते का क्या ठिकाना? वह किसी समय भी काट ले और मुझे उस घर में खतरे में ही रहना पडेगा। फिर भी हम उनके लडके के साथ कुत्ते से मिलने गए। हमें देखते ही वह फिर बुरी तरह झपटा और बडी मुश्किल से काबू में आया।
‘बस मैं अब उस घर में एक क्षण भी नहीं रह सकता था, जहां कुत्ता बेकाबू हो’ यह मैं अपने से बार-बार कहता रहा। कमरे में जाकर मैंने अपना सब सामान बांध लिया और जैसे ही मेरे मित्र पूजा करने बैठे, मैंने टेक्सी बुलाई और सामान लाद कर उस घर से चला गया। जाने से पहले मैंने अपने मित्र के लिए पत्र लिखकर छोड दिया, ‘‘प्रिय मि़त्रवर, मैं बिना बताए हुए यहां से जा रहा हूं, क्योंकि मैं जानता हूं कि अगर मैं आपसे कहकर जाĹंगा तो आप मुझे जाने नहीं देंगे। मैं जीवन में सदैव भगवान की कृपा पर ही रहा हूं। मैं इस घर में एक कुत्ते की दया पर नहीं रहना चाहता।
हमारी एक युवती मित्र को कुत्तों से विचित्र प्यार था। वह उस अमेरिकन महिला से भी इस मामले में आगे बढ गई थी, जिसने कुछ साल हुए अपनी सारी जायदाद अपने लगभग सौ कुत्तों के नाम लिख दी और अपने किसी रिश्तेदार को कुछ नहीं दिया। जब हमारी मित्र इंग्लैंड वापस चली गई तब वहां से वह मुझे अपने मित्रों अपने पत्रों में अपने नन्हें-मुन्ने कुत्ते के बार में बडे जोश-खरोश से लिखा करती थी और किसी भी इंसान की चर्चा ज्यादातर नहीं करती थी। एक दिन उन्होंने मुझसे यह भी कहा कि वह कुत्तों और आदमियों को बराबर प्रेम करती है। मैंने उस दिन उनके दिल में इंसान की हैसियत जान ली।
एक दिन इलाहाबाद में वह सुबह घूमने गई थी और करीब एक दर्जन कुत्ते उनके चारों तरफ आकर मंडराने लगे। उन्होंने ‘लाॅटरी’ डालकर उनमें से एक कुत्ते को चुन लिया। उसके गले में रेशमी दुपट्टा बांधकर वह उसे घर ले गई और रास्ते भर मस्ती से गाती रही।
दुनिया में ऐसे काफी लोग है। जो कुत्तों पर जान देते हैं। केलीफार्निया में एक बार एक कुत्ते के जनाजे में लगभग दस हजार आदमियों ने शिरकत की थी। जूनागढ के महाराजा ने तो हद ही कर दी। उन्होंने अपनी कुतिया, रोशनारा की शादी एक कुत्ते, बाॅबी से की। शादी में शिरकत करने के लिए उन्होंने वाइसराय और सैकडों विशिष्ट व्यक्तियों को निमंत्रण भी भेजा। वाइसराय नहीं आए और महाराजा कुछ निराश हुए। लाॅरी काॅलिंस और डोमिनिक लेपियर ने अपनी पुस्तक में लिखा है, ‘डेढ लाख आदमी उस शादी में शिरकत करने के लिए मौजूद थे। बारात का नेतृत्व शाहजादे के ‘बाॅडीगार्ड’ ने किया था। सजे-धजे हाथी आगे-आगे चल रहे थे। एक परेड भी की गई थी। उसके बाद महाराजा ने एक बहुत शानदार दावत दी। इस शादी में करीब 60 हजार पौंड खर्च हुए जिससे 1200 आदमी सालभर तक आराम की जिंदगी बिता सकते थे।
हम एक बार बंगाल उस समय गए थे, जब वहां भयंकर अकाल पडा था। वहां के खाद्य मंत्री सुहरावर्दी से मिले, क्योंकि हम जानना चाहते थे कि उनकी कई मामलों पर क्या राय है। जब हम वहां पहुंचे तब उन्होंने तथा उनके हट्टे-कट्टे कुत्ते ने हमारा स्वागत किया। हमारे लिए और कुछ अफसरों के लिए चाय-बिस्कुट मंगाए गए। हम लोगों को लगा कि मंत्रीजी कुत्ते को प्यार करने और खिलाने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं और हम लोगों की उपेक्षा कर रहे हैं। वे बिस्कुट प्लेट से उठाते और अपने हाथ से कुत्ते को खिलाते थे। उनका काफी हाथ कुत्ते के मंुह की लार से लथपथ हो जाता था। यह देखकर हमें उबकाई आने लगी। हम अंदर ही अंदर परेशान थे। हमारी खुश्किस्मती से वह एक कमरे के अंदर फाइल लेने गए। हमने तुरंत ही चाय और बिस्कुट दूर तक फेंक दिए। जब वह लौटे तब उन्होंने हमसे और बिस्कुट खाने का अनुरोध किया। उन्होंने अपने बिस्कुटों की बहुत तारीफ की। हमने अपने आपको संभालकर मंत्रीजी से कहा, धन्यवाद मैंने काफी खा लिए हैं। बहुत अच्छे बिस्कुट हैं। अब खाने की की गुंजाइश नहीं है।’
थोडी देर बात चलती रही और उनका दुलारा कुत्ता हमारे पास आकर बैठ गया। उसने हमारा पेंट चाटना शुरू कर दिया। हमें उन बिस्कुटों की फिर याद आ गई और हमने सोचा कि यदि हम यहां काफी देर तक बैठे तो उल्टी अवश्य हो जाएगी। हम एक दम खडे हो गए और हमने मंत्रीजी से कहा, बहुत बहुत शुक्रिया। काफी खबर मिल गई। अब इजाजत दीजिए। कल पूरी बातें अखबारों में छपेंगी। जब हम घर लौटे तब सोचते रहे कि सुहरावर्दी जैसे अक्लमंद लोग भी इस बात को महसूस नहीं कर पाते कि दूसरों को उनके कुत्तों को देखकर कितनी ग्लानि होती है।
माओ त्से तुंग के जमाने में पीकिंग में एक भी कुत्ता नहीं रह गया था। पूरा सफाया कर दिया गया था। जब चीनी हमारे देश में किसी के घर आए तब उनसे यह आशा नहीं करना चाहिए कि वह हमारे कुत्तों को चुचकारें-पुचकारें। वह हमारे कमरों में कुत्ते को टहलता देखकर क्रोधित हों तो हमें बुरा नहीं मानना चाहिए। यह दुःख की बात है हमारे देश में जो कुत्तों को बेहद प्यार करते हैं और खूब खिलाते-पिलाते हैं, उन्हें यह महसूस भी नहीं होता कि बहुत से गरीब बच्चे हैं, जिन्हें उनके प्यार और भोजन की जरूरत है।
प्रो. एसके नारायण ने लिखा है जब कोई कुत्तों की तारीफ करता या उनके सौंदर्य की चर्चा करता या कुत्तों को बडा वफादार बताता तब मेरे आग लग जाती है। उस समय मैं अपना क्रोध निर्भय होकर प्रकट करता हूं और अपनी नफरत का इजहार करता हूं। कुत्ते एक परेशानी का बायस हैं और मनुष्य मात्र के लिए वह मौत ही है। सब भले आदमी यही चाहते हैं कि ऐसी दुनिया हो जिसमें कुत्ते वगैराह नहीं हो। हम इस मामले में प्रो. नारायण से एक कदम आगे हैं। मैं चाहता हूं कि एक ऐसा सभ्य समाज हो, जिसमें वही लोग रहें जिन्हें कुत्ते पालने का शौक न हो और दूसरी जगह वह हो, जहां कुत्ते और कुत्ते पालने वाले ही रहें।
कुछ घरों में पालतू कुत्ते बिस्कुट और मिठाई खाते हैं और कहीं-कहीं इंसान के बच्चे कूडे के ढेर में खाने के टुकडे ढूंढते हैं। कुछ कुत्ते एयर कंडीशन कमरों में दोपहर बिताते हैं, और कुछ बच्चे गर्मियों की धूप में सडकों पर पानी की खोज में निकलते हैं। कुछ भाग्यवान कुत्ते जाडों में गरम कपडे पहने गरम कमरों में आराम करते हैं और काफी अभागे इंसान जाडों की किटकिटाती हुई सर्दी में रातें पेडों के नीचे बैठकर बिताते हैं। काफी कुत्तों को कुछ इंसान अपने प्यार में डुबोए रखते हैं। मगर उनकी उन लोगों की तरफ नहीं जाती जो प्यार के लिए तरसते हैं। यह है इंसान की इंसानियत इंसानियत का एक गैरत और हैरत अंगेज नजारा।
