शाही कुत्तों की मौत भी ग्लेमरस होती है

पुरानी कहावतों और मान्यताओं के अनुसार, कुत्तों की जिंदगी और मौत- दोनों ही बुरी मानी जाती थी। इन पुरानी मान्यताओं को ठेंगा दिखाते हुए नए जमाने के अरबपतियों के पालतू लाडले श्वान जो जिंदगी जी रहे हैं, उसे देखकर ईष्र्या की आग में जलने को जी चाहने लगेगा। सिर्फ जिंदगी ही नहीं, इन शाही श्वानों की मौत भी इतनी ग्लेमरस होती है कि मरने और मरने के बाद श्वान योनि पैदा होने का वर मांगने की ललक होती है।
क्वीन एना की रोजमर्रा की जिंदगी को ही लीजिए। आक्सफोर्ड शायर (ब्रिटेन) की पामेरियन नस्ल की इस रानी का एक छोटा-सा बंगला है। जो 20 हजार पौंड में बनकर तैयार हुआ था। पूर्णतः वातानुकूलित इस बंगले में पढने-लिखने का पूरा सामान, डायनिंग टेबल और चंदन की लकडी से बना शाही पलंग मौजूद है। रानी एना के रख-रखाव पर प्रतिमाह एक हजार पौंड (करीब 20 हजार रुपए) व्यय होते हैं।

एना की ये शानदार जिंदगी हाॅलीवुड के लाडले कुत्तों के मुकाबले फीकी पड जाती है। एलिजाबेथ टेलर का नाम तो हर फिलमी प्रशंसक ने सुना होगा। सेक्स और अभिनय की देवी माने जाने वाली इस रूपसी के प्रेम के हकदार शिह्तिज नस्ल के दो झब्बेदार कुत्ते थे। अपने इन प्यारे श्वानों के बाल के रंग से मैच कराने के लिए लिज ने अपने बालों को भी उसी रंग में रंगवाया था। जिमी स्टीवार्ट अपने जमाने में हाॅलीवुड के टाॅप हीरो थे और इनकी जिंदगी का हीरो था उनका कुत्ता। बीवरली हिल्स पर स्टीवार्ट ने 15 लाख डाॅलर का ऐ विशेष घर अपने प्यारे कुत्ते के लिए बनवाया था। टी.वी. अभिनेत्री विक्टोरिया प्रिंसपल ने डाॅबरमेन नस्ल के अपने कुत्ते के जनमदिन की पार्टी का जो बिल अदा किया था, वह था सिर्फ 40 हजार डाॅलर। इन फिल्मी सितारों के कुत्तों के लिए हाॅलीवुड में विशेष तौर पर ‘डाॅग ब्यूटी क्लीनिक’ बनाए गए हैं। अपनी निजी कारों में सवार होकर ये कुत्ते इन सौंदर्य की दुकानों पर जाकर सजते-संवारते हैं। सैर-सपाटे और मनोरंजन के लिए इन्हें विशेष रूप से इनके लिए ही बनाई गई ‘मोटलों’ में ले जाया जाता है। इन मोटलों में वे साप्ताहिक छुट्टी बिताते हैं। साथ ही रोमांटिक दोस्ती के लिए हमजोली का भी प्रबंध करते हैं। जब ये अपना जीवन साथी चुन लेते हैं, तब इनके अभिभावक रस्मी कार्रवाइयां निबटा कर भव्य पैमाने पर विवाह समारोह आयोजित करते हैं।

इन लाडलों का निधन हो जाने पर इनको कैलिफार्निया के विशेष कब्रिस्तान में दफनाया जाता है। इस कब्रिस्तान में अब तक 30 हजार स्मारक बन चुके हैं। कब्र के लिए जगह और स्मारक निर्माण का औसत खर्च 6 हजार डाॅलर लगभग 80 हजार रुपए आता है। (चैथा संसार में 28 मई 1989 को प्रकाशित)
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